“सन्दस्सेति, समादपेति,
समुत्तेजेति और सम्पहंसेति “-
तथागत बुद्ध विहार में भिक्षु परिषद को उत्साहित करने के लिए, न कि निरुत्साहित करने के लिए धर्म देशना देते थे।
भगवान देशना से भिक्षु परिषद को
सन्दस्सेति, समादपेति, समुत्तेजेति और सम्पहंसेति –
याने उत्साहित और आनन्दित करते थे। | धर्मदेशना देते हुए उनके मुख से जो घोष होता था वह आठ अंगों से परिपूर्ण होता था।
बुद्ध की वाणी आठ गुणों से परिपूर्ण होती थी –
[१] विसट्टो – याने विश्वसनीय और प्रामाणिक होती थी।
[२] विज्ञेय्यो -याने जानने योग्य होती है। सरलता से जानी, समझी जा सकती थी।
[३] मञ्जू – याने श्रवण-मधुर, कर्णप्रिय होती थी।
[४] सवनीयो – याने श्रवण योग्य होती है। सुनने वाले के लिए कल्याण का कारण बनती थी।
[५] बिन्दु -याने सारयुक्त होती थी। उसमें कोई शब्द निस्सार नहीं होता।
[६] अविसारी -याने कटुताविहीन होती है क्योंकि करुणा से भरी होती थी।
[७] गम्भीरो -याने गम्भीर होती है। उसमें छिछलापन नहीं होता। और
[८] निन्नादी -कांसे के बर्तन पर लगी चोट की झंकारसदृश होती है, जो सुनने वाले की हृदतंत्री को झंकृत कर देती थी।
श्रोता-परिषद जितनी बड़ी या छोटी होती थी उसी के अनुरूप उनकी आवाज तेज या धीमी होती थी। सारी परिषद उन्हें सुन पाती थी। और उससे आगे आवाज नहीं जाती । यों अपने स्वर पर उनका पूरा अधिकार रहता था। उनकी धर्मदेशना सुन कर लोग जब लौटते थे तो बिना पीठ दिखाए याने बिना मुड़े उनके दर्शनीय चेहरे को देखते-देखते चले जाते थे। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और उतनी ही प्रभावशाली वक्तृता को श्रोतागण भुलाए नहीं भूल पाते। वह चिर-स्मरणीय बनी रहती थी।
इस प्रकार उत्तर माणवक ने भगवान की सारी देशना एक बार नहीं बार-बार सुनी थी। यह सब देख कर उत्तर माणवक बहुत प्रसन्न हुआ। भगवान की गुणमयी वाणी का यह सजीव विवरण प्रस्तुत करके भी वह सन्तुष्ट नहीं होआ तो अन्त में कहता है –
“एदिसो च,
एदिसो च,
सो भवं गोतमो ।”
आप गोतम ऐसे हैं, ऐसे हैं और इतना ही नहीं,
ततो च भिय्यो” – याने इससे भी कहीं अधिक हैं। कितना कहूँ ?”
नमो बुद्धाय 🙏🏻🙏🏻
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