धर्म पथ पर आगमन सबसे महान कार्य
संसार को समझने की कला
लोक वग्ग धम्म पद गाथा क्रमांक-178
पथब्या एकरज्जेन, सगस्स गमनेन वा। सब्बलोकाधिपच्चेन,सोतापत्तीफलं वरं।
धम्मलीपी
𑀧𑀣𑀩𑁆𑀬𑀸 𑀏𑀓𑀭𑀚𑁆𑀚𑁂𑀦 𑀲𑀕𑀲𑁆𑀲 𑀕𑀫𑀦𑁂𑀦 𑀯𑀸,
𑀲𑀩𑁆𑀩𑀮𑁄𑀓𑀸𑀥𑀺𑀧𑀘𑁆𑀘𑁂𑀦 𑀲𑁄𑀢𑀸𑀧𑀢𑁆𑀢𑀻𑀨𑀮𑀁 𑀯𑀭𑀁
अर्थात
समस्त पृथ्वी के राज्य, स्वर्ग की दिव्य संपत्ति और सभी लोगों के स्वामित्व से बढकर है स्रोत आपत्ती(श्रोतापन्न) फल प्राप्त होना
अनाथपिंडीक के पुत्र काल का धम्म पथ पर आगमन
महाउपासक अनाथपिंडीक श्रेष्ठी को काल नामक पुत्र था, वह ईतने श्रद्धावान पीता का पुत्र होकर भी कभी धम्म श्रवण के लिए जेतवन विहार नहीं जाता था। भगवान बुद्ध अपने शिष्यों समेत जब कभी अनाथपिंडीक श्रेष्ठी के घर आते थे तो काल कभी उनके समक्ष उपस्थित नहीं होता था। अनाथपिंडीक श्रेष्ठी काल को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। अनाथपिंडीक श्रेष्ठी ने काल को भगवान बुद्ध के करीब लाने की तरकीब सोची और काल से कहाँ की, “अगर तुम उपोसथ व्रत रखकर विहार में धम्म श्रवण करने जाते हो तो मै तुम्हे सौ कार्षापण दूंगा।”
पैसे की लालच में आकर काल ने उपोसथ व्रत रख लिया। काल जेतवन विहार तो चला गया लेकिन उसने वहां जाकर धम्म श्रवण नहीं किया, वो विहार में ही सो गया। शाम होने पर वह घर आ गया और भोजन से पहले ही अपने पीता से सौ कार्षापण ले लिए।
दुसरे दिन अनाथपिंडीक श्रेष्ठी ने काल से कहाँ की,
“अगर तुम विहार जाकर बुद्ध गाथा को कंठस्त करोगे तो मै तुम्हे एक हजार कार्षापण दूंगा।”
पैसे की लालच में काल दोबारा विहार गया व भगवान बुद्ध से उसने आग्रह किया कि वह कुछ सिखना चाहता है।
भगवान बुद्ध ने उसे एक छोटी सी गाथा कंठस्त करने को कहा। लेकिन काल वो गाथा याद भी नहीं कर पाया, अतः वो उस गाथा का बार-बार उच्चारण करने लगे। बार-बार गाथा का उच्चारण करने से उसे गाथा का मतलब समझ में आ गया। उसे अनुत्पन्न व अनसुने धम्मका ज्ञान हो गया, और वह श्रोतापन्न हो गया।
अगले दिन भगवान बुद्ध अनाथपिंडीक श्रेष्ठी से मिलने उनके घर गयें। उस समय घर में काल भी था। काल मन ही मन में सोचने लगा कि,
अगर मेरे पीता ने भगवान बुद्ध के सामने मुझे हजार कार्षापण न दे तो कितना अच्छा होगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि भगवान बुद्ध को ये बात पता चले कि मैने पैसो की खातिर उपोसथ व्रत रखा था।”
लेकिन काल की ईस सोच के विपरीत अनाथपिंडीक श्रेष्ठी ने भगवान बुद्ध के सामने काल को एक हजार कार्षापण देने की चेष्टा की, लेकिन काल ने पैसे लेने से साफ मना कर दिया।
अनाथपिंडीक श्रेष्ठी तीन बार काल से पैसे के लिए कहा लेकिन काल ने हर बार पैसे लेने से मना कर दिया।
तब पुत्र का व्यवहार देखकर अनाथपिंडीक श्रेष्ठी ने प्रसन्न होकर भगवान बुद्ध से काल के विषय में सब कुछ बता दिया। तब भगवान बुद्ध ने महाउपासक अनाथपिंडीक श्रेष्ठी से कहाँ की,
“अनाथपिंडीक हजार कार्षापण तो छोडो, आज तुमने काल काल को महाचक्रवर्ती राजा का साम्राज्य भी दे दिया तो भी काल नहीं लेगा। क्योंकि आज वह श्रोतापन्न अवस्था को प्राप्त हुआ है। समस्त पृथ्वी के राज्य, स्वर्ग की दिव्य संपत्ति और सभी लोगों के स्वामित्व से बढकर है स्रोत आपत्ती फल प्राप्त होना।”
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✍️ राहुल खरे नाशिक
9960999363
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