बुद्ध ने कहा –
“अनिच्चा वत संङ्खारा, उप्पाद वय धम्मिनो।
उप्पज्जित्वा निरूज्झन्ति, तेसं वूपसमो सुखो।।”
सभी संस्कार अनित्य है।
उत्पन्न और नष्ट होना उनका स्वाभाविक गुण है।
उत्पन्न होकर वे शांत हो जाते है।
उनका सर्वथा शांत हो जाना परम सुख है।
तथागत ने यह कहा कि सभी संस्कार (पदार्थ = वस्तु = विचार) अनित्य है और वे उत्पन्न होकर नष्ट हो जाते है।
भगवान बुद्ध के इस दर्शन को प्रतित्य-समुत्पाद कहते है।
बुद्ध के उपरोक्त सिद्धांत को वैज्ञानिक कसौटी पर कस कर देखते हैं तो १०० प्रतिशत सत्य मालूम होता है।
विज्ञान का सिद्धांत है कि प्रत्येक पदार्थ छोटे छोटे कणों से बना है, जिन्हें परमाणु ( Atom ) कहते है। परमाणु की रचना न्यूट्रोन, प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन से होती है। प्रोटोन और न्यूट्रोन नाभि ( Nucleus) पर स्थित होती है और इलेक्ट्रॉन इनके चारों ओर चक्कर लगाते है और नाभि में गिरते हैं। अत: पदार्थ का छोटे से छोटा कण परमाणु भी स्थाई नहीं है। परमाणु से भी छोटे-छोटे टूकडें करते है, उसके अंदर भी उसी प्रकार की रचना और अंतर निरंतर जारी है। वैसा सौरमंडल में भी होता है। ऐसे संसार का कोई भी पदार्थ स्थाई = नित्य नहीं है।
विश्व का यह रहस्य तथागत बुद्ध ने ध्यान और चिंतन के माध्यम से खोजा है।
बुद्ध की यह खोज दु:ख मुक्ति के लिए है।
बुद्ध ने कहा –
“सब्बे सञ्खारा अनिच्चाति,सब्बे सञ्खारा दुक्खाति,
सब्बे धम्मा अनत्ताति, यदा पञ्ञाय पस्सति।”
अगर प्रज्ञा से देखते है तो तथागत बुद्ध श्रेष्ठ वैज्ञानिक दिखाई देते है।
सच में बुद्ध सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक है।
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