“पुराणञ्च कम्मं फुस्स फुस्स व्यन्तीकरोति”
– पुराने कर्मों को छू- छू कर समाप्त कर देता है।
एक समय भन्ते आनंद थेर वैशाली के महावन में, कुटागारशाला में विहार करते थे। उस समय अभय लिच्छवी तथा पंडितकुमार लिच्छवी भन्ते आनंद के पास गए। अभिवादन कर एक ओर बैठकर अभय लिच्छवी ने भन्ते आनंद को सांदृष्टिक निर्जरा- विशुद्धि के विषय में तथागत का क्या मत है, ऐसा प्रश्न पुछा।
उत्तर में भन्ते आनंद ने कहा-
तथागत बुद्ध ने प्राणियों की विशुद्धि के लिए,शोक तथा क्रंदन के समतिक्रमण के लिए,दु:ख-दौमनस्य के नाश के लिए, ज्ञान की प्राप्ति के लिए और निर्वाण को साक्षात करने के लिए तीन प्रकार की
निर्जरा- विशुद्धियां कही है।
कौन-सी तीन?
१) भिक्षु शीलवान होता है,प्रातिमोक्ष आदि शिक्षापदों को सम्यक प्रकार ग्रहण करने वाला, वह नया कर्म नहीं करता है और पुराने कर्मों को छू- छू कर समाप्त कर देता है। वह सांदृष्टिक निर्जरा है, अकालिक है, इसके बारे में कह सकते है – आआे और स्वयं परीक्षा कर लो।
२) अब वह शील सम्पन्न भिक्षु कामभोगों से दूर हो…चतुर्थ ध्यान को प्राप्त कर विहार करता है। वह नया कर्म नहीं करता है और पुराने कर्मों को छू- छू कर समाप्त कर देता है। वह सांदृष्टिक निर्जरा है, तत्काल फलदायक है। आओ और देखो कहलाने योग्य है, निर्वाण तक ले जाने योग्य है, प्रत्येक समझदार व्यक्ति के साक्षात करने योग्य है।
३) अब वह समाधि सम्पन्न भिक्षु आस्रवों का क्षय कर अनास्रव चित्त- विमुक्ति, प्रज्ञा-विमुक्ति को इसी जीवन में स्वयं सम्यक रूप से जानकर,साक्षात कर विहार करता है। वह नया कर्म नहीं करता है और पुराने कर्मों को छू- छू कर समाप्त कर देता है। यह सांदृष्टिक निर्जरा है, अकालिक है, उसके बारे में कह सकते हैं कि – आओ और स्वयं परीक्षा कर लो, यह निर्वाण की ओर ले जाने वाली है, इसे प्रत्येक विज्ञ व्यक्ति साक्षात कर सकता है।
अभय ! तथागत बुद्ध ने ये तीन प्रकार की निर्जरा- विशुद्धियां कही है जो प्राणियों की विशुद्धि के लिए,शोक तथा क्रंदन के समतिक्रमण के लिए,दु:ख-दौमनस्य के नाश के लिए, ज्ञान की प्राप्ति के लिए और निर्वाण को साक्षात करने के लिए है।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
Ref: निर्ग्रंथ सुत्त : अंगुत्तरनिकाय
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