१४०० वर्ष पूर्व चीनी भिक्खू हुएनत्संग की भारत यात्रा से मैं हमेशा रोमांचित रहा हूं। उनका लिखा हुआ भारतयात्रा वृतांत उस समय की भारत में बौद्ध धम्म की स्थिति और स्थानों के बारे में सटीक जानकारी देता है। उन्होंने भारत आने का जो रास्ता अपनाया उसे बाद में सिल्क रोड के नाम से जाना गया। चीनी सम्राट द्वारा उन्हें देश छोड़ने की अनुमति नहीं दी गई थी, इसलिए भारत में कुछ साल बिताने के बाद स्वदेश वापस जाते समय, वह खोतान में रुक गए और चीनी सम्राट को पत्र भेजा। इसमें उन्होंने लिखा, “बुद्ध की शिक्षाएं जो चीन तक पहुंचीं वो अधूरी थीं। मैं इसे पूरी तरह से समझने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करते हुए गुप्त रूप से भारत गया था। मैंने विशाल रेगिस्तानों, बर्फ से ढकी पर्वत चोटियों, बेहद खतरनाक घाटियों और भयानक गर्म प्रदेश से यात्रा की। हजारों लोगों के रीति-रिवाजों और पोषाक को देखने और कई प्रतिकूलताओं का सामना करने के बाद, मैं आपको वंदन करने के लिए वापस आया हूं। मैंने गद्रकुट पर्वत देखा। बोधिवृक्ष की पूजा की। तथागत के कई ऐसें स्थानों का दर्शन किया, जो हमारे देश में पहले किसी ने नहीं किया था। पवित्र वाणी सुनी जिसे पहले कभी किसी ने नहीं सुना था। अब कई बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन करके, बुद्ध मूर्तीया, पवित्र बुद्धधातू और ग्रंथ लेके मैं आपसे मिलने आया हुं।
इस पत्र को पढ़कर सम्राट बहुत खुश हुए। उन्होंने हुएनत्संग की राजधानी की यात्रा के लिए सभी व्यवस्था करने का आदेश दिया। हुएनत्संग जिस दिन राजधानी पहुंचे, उस दिन उनका भव्य स्वागत किया गया। उस दिन राजधानी में छुट्टी मनाई गयी। उनके स्वागत के लिए भारी भीड़ उमड़ी। भिक्खु हुएनत्संग ने अपने साथ भारत से कई मूल्यवान चीजें लायी। इनमें १५० बुद्धधातु कुपिया, मगध की स्वर्ण बुद्ध प्रतिमाएं, चंदन की बुद्ध प्रतिमाएं, चांदी की बुद्ध प्रतिमाएं, ४ फीट ऊंची क्रिस्टल बुद्ध प्रतिमाएं, महायान संप्रदायों के २२४ ग्रंथ, स्तविरवाद शाखा के १५ ग्रंथ और विभिन्न सूत्र, सम्मतिया शाखा के १५ ग्रंथ, सर्वस्थिवाद शाखा के ६७ ग्रंथ, धर्मगुप्त शाखा कें ४२ ग्रंथ, हेतुविद्याशास्त्र के ३६ ग्रंथ ऐसे कुल मिलके ६५७ ग्रंथ बीस घोड़ों पर रखकर लाए गए। हालांकि यात्रा के दौरान कई जगहों पर नदी पार करते समय पानी में कई किताबें और वस्तुएं डूब गयी।
यह सब देखकर चीन के सम्राट ने हुएनत्संग कों दरबार में एक सम्मानजनक पद दिया। लेकिन भिक्खू हुएनत्संग ने इसे स्वीकार नहीं किया और अपने साथ लाए गए ग्रंथ का चीनी में अनुवाद करना शुरू कर दिया। इ.स. ६४७ में, उन्होंने बोधिसत्व पिटक सूत्र, बुद्ध-भूमि शास्त्र, शतमुखी-धरणी और कुछ अन्य ग्रंथों का अनुवाद किया।-इ.स. ६४८ में, उन्होंने पंद्रह ग्रंथों का अनुवाद किया और सम्राट के कहने पर अपना यात्रा वृत्तांत, “सी-उ-की” लिखा। सम्राट की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपना अधिकांश जीवन अनुवाद और उपदेश देने में बिताया। उन्होंने कुल ७४ ग्रंथों का चीनी में अनुवाद किया। महाप्रज्ञापारमिता सूत्र में ही दो लाख सूत्र हैं। अपने बाद इस अनुवाद कार्य को निर्बाध रूप से जारी रखने के लिए उन्होंने कर्तव्यपरायण और विद्वान भिक्खूओं की शिष्य परंपरा का निर्माण किया।
इ.स. ६५२ में, उन्होंने १८० फीट ऊंचा एक स्तूप बनवाया। वहां उन्होंने भारत से लाए गए बहुमूल्य ग्रंथ, बुद्ध प्रतिमाएं, बुद्धधातु की कुपिया रख्खी। जीवन के अंत में इ.स.६६४ में एक दिन सभी सूत्रों का पाठ करने के बाद, उन्होंने मैत्रेय बोधिसत्व के स्रोत को गाते हुए अपनी आँखें बंद कर ली। Xuanzang’s travel to India not only gave new life to Chinese Buddhism, but also had an enduring effect on the Chinese literary imagination. इसलिए, यह ध्यान में रखना चाहिए कि निस्वार्थ और बुद्धिमान भिक्खू जैसे फाह्यान, हुएनत्संग और ई-त्सिगं के कारण ही चीन में बुद्धिझम आज फला-फुला है।
भिक्खू हुएनत्संग की भारत यात्रा पर आधारित एक खूबसूरत फिल्म की लिंक नीचे दि गयी है। यह जरूर देखीए https://www.youtube.com/watch?v=ulDzLjz0wdw
— संजय सावंत (नवी मुंबई) https://sanjaysat.in






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