November 5, 2024

Buddhist Bharat

Buddhism In India

☸ अष्टांगिक मार्ग का आधार शील ☸

【 “गुणानं मूलभूतस्स सीलं।” 】

एक समय तथागत श्रावस्ती में अनाथपिंडिक द्वारा बनाए गए जेतवन महाविहार में विहार करते थे। उस समय बुद्ध ने भिक्खुओं को संबोधित करते हुए कहा-

“भिक्षुओ ! जितने बल से कर्म किये जाते हैं, सभी पृथ्वी के आधार पर ही खड़े होकर किये जाते हैं। भिक्षुओ ! वैसे ही, शील के आधार पर प्रतिष्ठित होकर आर्य अष्टांगिक मार्ग का अभ्यास किया जाता है।

“भिक्षुओ ! शील के आधार पर प्रतिष्ठित होकर कैसे आर्य-अष्टांगिक मार्ग का अभ्यास किया जाता है ?”

“भिक्षुओ ! विवेक, विराग और निरोध की ओर ले जानेवाली सम्यक-दृष्टि का अभ्यास करता है । वैसे,सम्यक संकल्प का अभ्यास करता है। सम्यक वचन का अभ्यास करता है। सम्यक कर्मान्त का अभ्यास करता है ।
सम्यक आजीविका का अभ्यास करता है। सम्यक व्यायाम का अभ्यास करता है। सम्यक स्मृति का अभ्यास करता है और सम्यक समाधि का अभ्यास करता है ।

भिक्षुओ ! इसी प्रकार शील के आधार पर प्रतिष्ठित होकर आर्य अष्टांगिक मार्ग का अभ्यास किया जाता है।”

शील धरम की नीव है जो करे सदा कल्याण।

“गुणानं मूलभूतस्स सीलं।”
शील गुणों का मूल है।

नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻