प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उनकी जीवनसंगिनी का बड़ा हाथ होता है । जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद, वह व्यक्ति, महापुरुष ही नहीं बन पाता । क्रांतिप्रेरणा रमाई अम्बेडकर इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी।
अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवनसंगिनी सब पीछे छूट जाते हैं क्योंकि, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है । यही कारण है कि रमाई के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है ।
रमाई का जन्म महाराष्ट्र के दापोली के निकट वणन्द गावं में 7 फरवरी, 1897 में हुआ था । इनके पिता का नाम भीकूजी धोत्रे धुत्रे और माँ का नाम रुक्मणी था । महाराष्ट्र में कहीं-कहीं नाम के साथ गावं का नाम भी जोड़ने का चलन है । इस चलन के अनुसार उन्हें भीकूजी वाणन्दकर के नाम से भी पुकारा जाता था । भीकू वाणन्दकर अपनी आय से परिवार का पालन-पोषण करते थे।
रमाई के बचपन का नाम रामी था । रामी की दो बहने बड़ी बहन गौरा और छोटी का नाम मीरा था, तथा एक भाई शंकर जो चारों भाई-बहनों में सबसे छोटा था । बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ बम्बई में भायखला आकर रहने लगे थे।
रामी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में सुबेदार मेजर रामजी मालोजी सकपाल के सुपुत्र भीमराव से वर्ष 1906 में हुआ था । उस समय भीमराव की उम्र उस समय 14 वर्ष थी और वे 10 वीं कक्षा में पढ़ रहे थे । शादी के बाद रामी का नाम रमाई हो गया था । शादी के पहले रमा बिलकुल अनपढ़ थी, किन्तु शादी के बाद भीमराव आंबेडकर ने उन्हें साधारण लिखना-पढ़ना सीखा दिया था जिससे वह अपने हस्ताक्षर कर लेती थी । डॉ. अम्बेडकर रमा को ‘रामू’ कह कर पुकारा करते थे जबकि रमाबाई बाबा साहब को ‘साहब’ कहा करती थी।
डॉ बाबासाहब आंबेडकर जी के संघर्षमय जीवन में रमाई ने अत्यंत ग़रीबी में अपने परिवार को सँभाला। यें वह दौर था जब डॉ आंबेडकर अभी विख्यात नहीं हुएँ थे। परदेस की पढ़ाई और सामाजिक कार्य इन कारणों की वजह से डॉ आंबेडकर व्यस्त हुआँ करते थे। ऐसे कठिन समय में क्रांतिप्रेरणा रमाई ने परिवार को सँभालने का बेड़ा उठाया। उनका त्याग और समर्पण इन्हीं से डॉ आंबेडकर आगे चलकर विश्वविख्यात हो गयें। इसी समयकाल में रमाई को अपने पुत्रों का भी बलिदान देना पड़ा।
२७ मई १९३५ के दिन रमाई अपने साहब को छोड़कर विदा हो गईं। इस दिन समूचे संसार को पालनेवाले डॉ आंबेडकर किसी मासूम बच्चे जैसे रो पड़े थे। अपने पत्नी से वह असीम प्यार करते थे।
आज हमारे समाज ने डॉ आंबेडकर जी के जीवन से अपनी पत्नी से बेहद प्यार करने का उदाहरण अपनाना चाहिएँ।
क्रांतिप्रेरणा रमाई जयंती उपलक्ष्य हेतु सभी को हार्दिक हार्दिक मंगल कामनाएँ !
सब का मंगल हो …..
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