श्रावस्ती का श्रेष्ठि सुदत्त राजगृह में तथागत बुद्ध के संपर्क में आया ।उसके पुण्य कर्म जाग उठे । तथागत को श्रावस्ती में वर्षावास करने के लिए निमंत्रण दिया ।
श्रावस्ती (वर्तमान बलरामपुर से 15 किमी दूर बहराइच रोड स्थित,यु पी ) पहुंच कर तथागत बुद्ध के विहार के लिए योग्य स्थान की खोज करते-करते उसे जेत राजकुमार का बगीचा पसंद आया क्योंकि, वह उद्यान, श्रावस्ती से न अति दूर था, न अति समीप, वहां आने-जाने की सुविधा थी और ध्यान के लिए अनूकूल था। सभी प्रकार से अनुकूल दिख पडने पर सुदत्त श्रेष्ठि यह बगीचा खरीदने के लिए राजकुमार जेत के पास गया। राजकुमार अपना बगीचा नहीं बेचना चाहता था। उसने सुदत्त को टालने के लिए उसकी क़ीमत “कोटि सन्थर”बता दी ।
सुदत्त ने राजकुमार की जबान पकड ली और तत्क्षण सौदा पक्का कर लिया ।
कोटि सन्थर का अर्थ था — करोडो का बिछावन ।
उस जमाने में बोलचाल की भाषा में इसका मतलब था, बगीचे की सारी भूमि पर एक किनारे से दूसरे किनारे तक सोने के सिक्कों की बिछावन करनी।
श्रेष्ठि सुदत्त ने यही किया । गाडियों में सोना भर-भर कर लाया और उसने बगीचे के एक छोर से दूसरे छोर तक बिछाना शुरू कर दिया ।
जेत राजकुमार यह सब देख कर भौचक्का रह गया। उसने सोचा, अवश्य इस भूमि पर कोई महत्वपूर्ण कार्य होने जा रहा हैं । उनके भी पुण्य(कुशल) कर्म जाग उठे। जमीन का एक कोना अभी सोना बिछाये जाने से बचा था, राजकुमार ने कहा –
बस कर गहपति, इस खाली जमीन को मत ढक ।
यह मेरा दान होगा ।
हजारों साल से अनाथपिंडिक के द्वारा भिक्खुसंघ को जेतवन विहार के नाम से दान दिया। उसी जेतवन विहार में तथागत बुद्ध ने २५ वर्षावास किया। यहां तथागत द्वारा दिए गए उपदेश आज भी प्रेरणा मानव कल्याण के प्रासंगिक है। महामंगल सुत्त में बताए गए 38 मंगल बहुत मंगलकारी है। जो लोग उन 38 मंगल का आचरण करते है उनको निर्वाण की प्राप्ति होती है।
दान पारमीता का यह अमर इतिहास सब को प्रेरणा देता है।
ऐतिहासिक जेतवन विहार के लिए दान देने वाले सुदत्त श्रेष्ठी (अनाथपिण्डिक) और जेत राजकुमार को विनम्र वंदन।
दानं ददन्तु सद्धाय!
भवतु सब्ब मंगलं !
More Stories
Dhamma Dhwaj Vandana धम्म ध्वज वंदना
Dr. Babasaheb Ambedkar Social Contribution डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरांचे सामाजिक योगदान
महामानवाचा शेवटचा संदेश व अखेरच्या काळातील खंत! Nanak Chand Rattu