जब मैं कहता हूँ कि मैं बौद्ध हूँ। When I say- I’m a Buddhist.
कितनी सत्य बात है :
प्रोफेसर रिचार्ड गोम्ब्रिक, जिन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अपने जीवन के 40 बरस बुद्ध धम्म एवं पालि भाषा के अध्ययन में व्यतीत किये हैं, बुद्ध धम्म के बारे में अपनी समझ को साझा कर रहे हैं:
” 01. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ तो इसका यह अर्थ नहीं होता कि मैं दूसरे लोगों से शुद्धतर और बेहतर हूँ। बल्कि इसका अर्थ यह होता है कि मुझमें अत्यधिक अज्ञानता और मिटाने के लिए अत्यधिक मानस विकार हैं। मुझे बुद्ध की प्रज्ञा की जरूरत है।
02. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ तो इसका यह अर्थ नहीं होता कि मुझमें दूसरों से अधिक प्रज्ञा है। बल्कि इसका अर्थ यह होता है कि मैं अत्यधिक मूढ़ता से भरा हुआ हूँ। मुझे विनम्र होना सीखना है और व्यापक नज़रिया विकसित करना है।
03. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ तो इसलिये नहीं कि दूसरे लोगों से बेहतर अथवा बदतर हूँ, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं जानता हूँ कि सभी प्राणी समान हैं।
04. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, मुझे मालूम है कि मैं सिर्फ उन्हें प्रेम करता हूँ जो हमारी अभिरुचि के अनुरूप होते हैं, लेकिन बुद्ध उन लोगों को भी प्रेम करते हैं जिन्हें वह पसंद नहीं करते, प्रज्ञा व करुणा की परिपूर्ण अवस्था तक उनका मार्गदर्शन करते हैं। यही कारण है कि मैंने बुद्ध की शिक्षाओं का अनुगमन करने का चयन किया है!
05. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ , तो इसका लक्ष्य यह नहीं है कि मैं वह हासिल करना चाहता हूँ जो मेरे हित में है। बल्कि अपनी समस्त व्यक्तिगत सांसारिक इच्छाओं की लिप्साओं की उपेक्खा कर देना है।
06. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि मैं एक सुखद जीवन के लिए लालायित हूँ। बल्कि लालायित हूँ अनित्यता की शान्त स्वीकृति के लिए और कैसी भी विपरीत परिस्थितियों में सम्राट की भांति शान्त रहना व आत्मविश्वास से परिपूर्णता बने रहने के लिए।
07. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, तो मेरा यह अर्थ नहीं है कि मैं अपने हित के इरादे से और लोगों को रूपांतरित करना चाहता हूँ। बल्कि प्रज्ञा का सदुपयोग करते हुए स्वयं का तथा प्राणीमात्र के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहते हुए लोगों का हित करना।
08. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं जगत से पलायन करना और शून्यता को तलाशना चाहता हूँ। बल्कि यह जानना कि दिन-प्रतिदिन का जीवन धम्म में है, और वर्तमान में रहना ही साधना है।
09. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मेरा जीवन अब झटके अनुभव नहीं करेगा। बल्कि धम्म के साथ, झटके मेरे विकास के कारकरूप में रूपान्तरित हो जाएंगे।
10. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, तो मेरा ह्रदय अनन्त आभार से भर जाता है। बस यह सोच कर कि मैं एक मनुष्य के रूप में जन्मा और विद्वान गुरुओं का सान्निध्य लाभ का अवसर पाने के कारण व बुद्ध की शिक्षाएं सुन कर इस जीवन में साधना करने में समर्थ हो सका, इस अविश्वसनीय कार्मिक साम्यता को देख कर मैं गहराई तक भावुक हो जाता हूँ।
11. जब मैं कहता हूँ कि –
मैं बौद्ध हूँ, तो इसलिये नहीं कि मुझसे बाहर कहीं ईश्वर विद्यमान है। बल्कि इसलिए कि सच्चे बुद्ध-चित्त को मैं अपने ह्रदय में पाता हूँ।” — प्रोफेसर रिचार्ड गोम्ब्रिक
[ Some time ago, I come to read the article written by Professor Richard Gombrich. I was so much impressed by his thoughts. I was thinking to write my views on the qualities of a Buddhist. The idea of writing message was doing rounds in my mind. Finally, I decided to reproduce the same message of Professor Richard Gombrich for the benefits of friends in FB and WhattsApp. The Hindi translation is reproduced below:
– Ramesh Banker Bauddh ]
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